डिजिटल माँ

आरती मिश्रा जी 

डिजिटल माँ

जन्म से बच्चे जब घर रह जाते हैं तो सबसे तकलीफदेह होता है बच्चो को बाहर भेजना। अब पढ़ाई, लिखाई, नौकरी के लिए बच्चे तो बाहर जाते ही हैं। उनकी चिंता लगी रहती है। 

जब राहुल और विशाल बाहर गए थे तब मेरे पास फोन ही नहीं था। घर में जो फोन होता भी था तो कीपैड वाला साधारण फोन। उससे बस बातचीत भर हो पाती थी। कॉल रेट ज्यादा होने के नाते बहुत देर की बात भी नहीं होती थी। 

आजकल जमाना बदल गया है तो नए तौर तरीके हमने भी धीरे धीरे अपना लिया है। मेरे घर का सबसे छोटा बच्चा रुद्र के लिए हमने वीडियो कॉलिंग, यूट्यूब चलाना सीखा है। हम बेहद आसानी से फ्लिपकार्ट, अमेजन के जरिए रुद्र के लिए नए नए कपड़े मांगा लेते हैं। पुराने गाने खोजने के लिए हम आसानी से यूट्यूब पर बोलकर खोज लेते हैं।

रुद्र जब अपने मामा के वहां जाते हैं तो उनसे बात चीत वीडियो कॉलिंग से हो जाती है। डिजिटल दुनिया ने बहुत कुछ बदल दिया है।




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